
होली का त्यौहार होलिका दहन से शुरू होता है और होलिका दहन की तैयारियां बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं तो आइए हम आपको होलिका दहन के बारे में कुछ रोचक बातें बताते हैं।
एक महीने पहले शुरू हो जाती है होलिका दहन की तैयारी
वैसे तो होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होता है लेकिन इसकी तैयारी माघ महीने की पूर्णिमा से ही शुरू हो जाता है। इसके लिए एक महीने पहले गांव या शहर के किसी खास चौराहे पर गुलर के पेड़ की लकड़ी को रख दिया जाता है जिसे होली का डंडा गाड़ना कहते हैं। उसके बाद एक महीने तक धीरे-धीरे उस पर उपले, लकड़ियां, डंडे और झांड़िया इकट्ठी की जाती हैं। होलिका में गोबर के उपलों की माला भी बनायी जाती है जिसे महिलाएं घर में कई दिन पहले से बनाना शुरू कर देती हैं।
इस साल होलिका दहन पर नहीं है भद्रा काल
इस साल होलिका दहन की खास बात यह है कि 9 मार्च सोमवार को भद्राकाल सुबह 6:37 से शुरू होकर दोपहर 1:15 तक ही रहेगा। शाम को प्रदोषकाल में होलिका दहन के समय भद्राकाल नहीं है। इससे होलिका दहन शुभ फल प्रदान करने वाला होगा। इस साल होलिका में सभी के रोग, शोक तथा विभिन्न प्रकार के दोष दूर होंगे। इसके अलावा सोमवार को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के साथ ध्वज योग भी रहेगा जो विजय तथा यश-कीर्ति प्रदान करेगा। इस साल होलिका दहन के अवसर पर पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र है जिसमें ध्वज योग रहेगा। यह योग व्यक्ति को विजय, यश तथा कीर्ति प्रदान करता हो। यही नहीं गजकेसरी योग की प्रधानता लोगों को रोग और शोक से दूर करती है।
होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथा भी है रोचक
होलिका दहन से जुड़ी एक कथा बहुत पहले से प्रचलित है । इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक राक्षस था जो हिरण्यकश्यप के नाम से जाना जाता था। वह बहुत बलशाली था। अपने शक्ति का उसे बहुत घमंड था। उसने अपने राज्य की प्रजा को आदेश दिया कि जो कोई भक्त विष्णु भगवान की पूजा करेगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। राक्षस का यह व्यवहार देखकर भगवान विष्णु ने उसे दंड देने के लिए भक्त प्रह्लाद को उसके यहां बालक रूप में भेजा। प्रह्लाद ने उसके यहां जन्म लिया लेकिन प्रह्लाद विष्णु के उपासक थे जिसे देख कर वह बहुत क्रुद्ध होता था। एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका के साथ योजना बनायी। उसने होलिका को बालक प्रह्लाद को लेकर आग में बैठने की आज्ञा दी। होलिका हिरण्यकश्यप की बात मानकर आग में तो बैठ गयी लेकिन विष्णु भगवान की कृपा से बालक प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ होलिका आग में जलकर भस्म हो गयी। इस प्रकार भक्त प्रह्लाद के बचने और होलिका के जलने की खुशी में हर साल होली से पहले होलिका जलायी जाती है।
कैसे करें होलिका की पूजा
हमारी हिन्दू परम्पराओं में होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा की प्रावधान है। इस पूजा में सबसे पहले एक कलश में गंगा जल रखें। साथ में हल्दी, अबीर, गुलाल, धूप, दीप, मूंग, साबुत हल्दी, नारियल बताशे, साबूत अनाज , गेहूं की बालियां और पके चने रख सकते हैं। होलिका में मालाएं भी चढ़ाई जाती हैं जिनमें पहली माला पूर्वजों को समर्पित होती है, दूसरी भगवान हनुमान, तीसरी मां शीतला और चौथी माला घर की सुख-समृद्धि हेतु चढ़ाई जाती है। कच्चे सूत को होलिका की चारों ओर परिक्रमा करते हुए लपेटें। होलिका में आहूति का भी खास महत्व है। साथ में लाए गए सामग्री को सच्चे मन होलिका में समर्पित करें, आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। कच्चे सूत को परिक्रमा करते हुए तीन या सात बार लपेट सकते हैं। उसके बाद सभी समाग्रियों को होलिका में अर्पित करें तथा मंत्रोपचार करते हुए अघर्य दें।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन की तारीख - 09 मार्च 2020
होलिका दहन का मुहूर्त- 18:26 से 20:52 बजे
होलिका की राख भी होती है बहुत खास
होलिका दहन तो पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है लेकिन देश में कई स्थानों पर होलिका की राख का भी खास महत्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन के बाद राख को हर में रखना चाहिए तथा शरीर पर भी लगा सकते हैं। होलिका की राख को घर में लाने से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। अगले दिन होली की सुबह घर के आंगन को गोबर से लिपकर वेदी बनाए तथा पूर्वजों को याद कर रंग-गुलाल की शुरुआत करें।