गांधी का महिलाओं के नाम संदेश

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औरत का सुदृढ़ व्यक्तित्व विकसित समाज का स्तम्भ होता है, आज औरतों के लिए जो अनुकूल माहौल बना है उसकी नींव गांधी ने बहुत पहले रख दी थी। 

महिला का आर्थिक स्वावलम्बन, उसकी परिवार में मजबूत पकड़, पुरुष के साथ समानता तथा सहनशीलता की मूर्ति बन कठिनाइयों को धैर्यपूर्वक सहन करने वाले गुणों को गांधी ने बरसों पहले महत्व दिया था। उनके इन्हीं गुणों के कारण गांधी ने नारियों को सहज ढ़ंग से आजादी की लड़ाई का अभिन्न अंग बनाया। गांधी के नारी से जुड़े विचार इक्कीसवीं सदी में क्रांतिकारी लगते हैं। 

आज आर्थिक सशक्तिकरण का झंडा बुलंद करने वाली नारी के स्वावलम्बन का बीज गांधी ने बरसों पहले रोपित कर दिया था। उन्होंने चरखा की अवधारणा विकसित कर गांव-गांव में महिलाओं को रोजगार दिलाया। इस तरह महिलाओं ने पहली बार आर्थिक स्वावलम्बन का अनुभव किया जो उनके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण पक्ष रहा। चरखा द्वारा आजाविका अर्जित करने की खास बात यह रही कि इसमें नारियों को घर से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं थी। इस प्रकार आज महामारी के दौर में प्रचलित वर्क फ्राम होम की अवधारणा ने सालों पहले सजीव रूप धारण कर लिया था। खादी निर्माण उन नारियों हेतु संजीवनी साबित हुआ जो घरेलू जिम्मेदारियों और सामाजिक बंधनों के कारण घर से बाहर नहीं जा सकती थीं । 

गांधी ने स्त्री-पुरुष को समान माना और उनका कहना था कि स्त्री-पुरुष में समान आत्मा का वास होता है इसलिए उनमें कोई भेदभाव करना उचित नहीं है। स्त्री-पुरुष समान तो हैं लेकिन परिवार में भूमिकाएं अलग-अलग हैं। स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं दोनों का अस्तित्व एक दूसरे के बिना सम्भव नहीं है। स्त्री पुरुष की सहचरी है तथा उसकी मानसिक शक्तियां कम नहीं हैं। जहां पुरुष आजीविका हेतु परिश्रम करते हैं वहीं स्त्री घर की देखभाल तथा मातृत्व की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है।

गांधी स्त्री-पुरुष को समान मानते हुए भी नारियों में विद्यमान स्त्रियोचित गुणों के कारण उन्हें पुरुषों से श्रेष्ठतर मानते हैं। वह कहते हैं कि नारी सहिष्णुता के मामले में पुरुष से कहीं ऊपर है। धैर्य, त्याग, सहनशीलता, भावुकता तथा मातृत्व इत्यादि गुणों के कारण स्वराज प्राप्ति हेतु महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित किया।

गांधी कहते हैं कि नारी अबला नहीं बल्कि सबला है लेकिन बड़ी से बड़ी पीड़ा भोगना स्त्री का स्वभाव है । असहनीय कष्ट सहने तथा सहनशील होने के कारण नारियां अहिंसा के अनुकूल हैं। इसलिए गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को प्राथमिकता दी। वह कहते हैं कि अहिंसा को अगर जीवन का आधार माने तो भविष्य स्त्रियों के हाथ में होगा।

आज महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठायी जा रही है। क्या आप जानते हैं कि बरसों पहले नारियों के खिलाफ हो रही हिंसा से गांधी नाराज थे। वह कहते थे कि यदि मैं स्त्री होता अत्याचार को कभी सहन नहीं करता बल्कि उसका यदि अन्याय का विरोध करता। यही नहीं गांधी ने परदा प्रथा तथा दहेज जैसी समस्या का भी विरोध किया। लेकिन उनके विरोध का आधार पुरातन न होकर वैज्ञानिक था। वह कहते थे कि महिलाओं को सेहतमंद रहने के लिए आक्सीजन तथा धूप की आवश्यकता होती है इसलिए नारियों को परदा प्रथा का विरोध करना चाहिए। 

परिवार में अपनी भूमिका के लिए गांधी ने स्त्रियों को सचेत किया। वह कहते हैं कि किसी भी अन्याय के खिलाफ नारियों को अपने पतियों के समक्ष न कहने की ताकत रखनी चाहिए। गांधी का महिलाओं को विदेशी वस्त्रों की होली जलाने तथा शराब बंदी आंदोलन में शामिल करने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी परिवार में उनकी मजबूत पकड़ तथा धैर्यपूर्वक समस्याओं को हल करने की भावना थी।

 

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